केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पद की गरिमा बनाए रखें और सत्य का सम्मान करें – कांग्रेस राज्य प्रवक्ता गोपालदादा तिवारी
पीयूष गोयल के निराधार आरोपों पर कांग्रेस की कड़ी आलोचना

पुणे: भारत सरकार के केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल एशिया इकोनॉमिक डायलॉग (AED) सम्मेलन के सिलसिले में पुणे आए थे। इस दौरान उन्होंने पत्रकारों से बातचीत करते हुए चीन के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापार घाटे का दोष 11 साल पहले की यूपीए सरकार पर मढ़ने की कोशिश की। कांग्रेस के राज्य प्रवक्ता गोपालदादा तिवारी ने इसे मोदी सरकार की उद्योग और व्यापार नीतियों की विफलता छिपाने का हास्यास्पद प्रयास करार दिया।

गोपालदादा तिवारी ने कहा कि मोदी सरकार अपने व्यापार और उद्योग की विफलताओं को छिपाने के लिए 2004 से 2014 के बीच यूपीए सरकार द्वारा चीन के साथ किए गए "कथित गुप्त समझौते" (?) को दोषी ठहरा रही है। लेकिन सच्चाई यह है कि मोदी सरकार 11 वर्षों से सत्ता में है और अभी तक किसी भी "गुप्त समझौते" का खुलासा नहीं कर पाई है। यदि ऐसा कोई समझौता था भी, तो इसे उजागर करने में असमर्थता खुद मोदी सरकार की विफलता को दर्शाती है।
तिवारी ने कहा कि केंद्रीय मंत्री जैसे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को झूठे, निराधार और तथ्यहीन आरोप लगाने से बचना चाहिए। चीन के साथ आयात-निर्यात नीति निर्धारित करने में किसी भी पूर्व सरकार के "कथित गुप्त समझौते" की कोई भूमिका नहीं है। हकीकत यह है कि यूपीए सरकार की तुलना में मोदी सरकार के कार्यकाल में चीन के साथ व्यापार घाटा 14% बढ़ गया है, जो कि चिंताजनक है।

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के कार्यकाल में निर्यात घटा है। ‘स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाओं का क्या प्रभाव पड़ा, इस पर पीयूष गोयल को पत्रकारों को जानकारी देनी चाहिए थी। वास्तविकता यह है कि 'भारत उत्पादन प्रबंधक सूचकांक' (PMI) में गिरावट आई है, जिससे देश में उत्पादन और बिक्री दोनों प्रभावित हुए हैं।

मोदी सरकार ने ‘प्रोडक्ट लिंक्ड इंसेंटिव’ (PLI) योजना लागू की थी, लेकिन इसका लाभ भारतीय उद्योगों के बजाय विदेशी टेलीकॉम कंपनियों को हुआ है। भारत-चीन व्यापार घाटे का असली कारण पूर्व सरकार का कोई कथित गुप्त समझौता नहीं, बल्कि मोदी सरकार की अक्षमता है, जिसने विदेशी निवेशकों को भारत में आकर्षित करने में विफलता पाई।

तिवारी ने कहा कि चीन से बाहर जाने वाले विदेशी निर्माता भारत की बजाय वियतनाम, मलेशिया और बांग्लादेश को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसका कारण इन देशों की बेहतर बुनियादी सुविधाएं, आकर्षक नीतियां और सरकार द्वारा दिया गया प्रोत्साहन है। ऐसे में मोदी सरकार को आत्ममंथन करना चाहिए कि चीन से निकलने वाले निवेश भारत में क्यों नहीं आ रहे हैं।

इसके अलावा, चीन ने 3,500 वर्ग किमी भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर लिया, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सार्वजनिक रूप से यह कहते हैं कि "कोई जमीन नहीं गई", जो देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। तिवारी ने सवाल उठाया कि क्या इस पर भी कोई "गुप्त समझौता" हुआ है?

उन्होंने यह भी बताया कि 2019 में भारत-चीन व्यापार घाटा 53.57 अरब डॉलर था, जो 2024 में बढ़कर 85.09 अरब डॉलर तक पहुंच गया। इस पर पीयूष गोयल या मोदी सरकार को जवाब देना चाहिए।

देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अनंत नागेश्वरन ने हाल ही में "आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट" में स्पष्ट रूप से कहा कि चीन अभी भी वैश्विक विनिर्माण महाशक्ति बना हुआ है, और भारत को विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए बुनियादी ढांचे में व्यापक सुधार करने की जरूरत है।

मोदी सरकार के "न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन" के दावे पर खुद उनके आर्थिक सलाहकारों ने सवाल उठाए हैं। इसके बावजूद मोदी सरकार अपनी नीतिगत विफलताओं को छिपाने के लिए "गुप्त समझौते" जैसे भ्रामक शब्दों का इस्तेमाल कर जनता को गुमराह कर रही है।

इस पत्रकार सम्मेलन में कांग्रेस प्रदेश डॉक्टर सेल के डॉ. अभिजीत बाबर, धनंजय भिलारे, गणेश शिंदे, भोला वांजळे, पै. शंकर शिर्के, आशीष गुंजाळ, राजेश सुतार, उदय लेले समेत कई कांग्रेस पदाधिकारी और कार्यकर्ता उपस्थित थे।


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